संगीत शिरोमणि, वेदमणि सिंह ठाकुर नहीं रहे….शास्त्रीय संगीत साधना के युग का अंत..

संगीत की स्वर लहरियां,तबले की थाप, ब्रम्हनाद की गूंज ब्रह्म में लीन हो गई। संगीत साहित्य का मौन साधक सदा के लिए मौन हो गया।
टहलने जब भी जाया करिए
इस गली में भी आया करिए।।
90 वर्ष की आयु कुछ समय से अस्वस्थ होने के बावजूद, अखबारों में निरन्तर कविताओं का प्रकाशित होना, दारोगा पारा की उस गली में जहां महान संगीत ऋषि पिता स्व जगदीश सिंह दीन मृदंगार्जुन जी की विरासत,छोटा सा घर , वहां संगीत शिष्यों का आना, संगीत की स्वर लहरियों, तबले की थाप गीत ग़ज़लों की मधुर स्वर गूंजना लगातार जारी था। नित्य नई रचना साहित्य का सृजन और संगीत साधना ही उनका जीवन था। आज प्रातः वहां भीड़ तो थी लेकिन संगीत की स्वर लहरियों, तबले की थाप गीत ग़ज़लों की मधुर स्वर गूंजना नहीं था। सब उदास, आंखों में अश्रु, स्मृतियों को स्मरण करते, आपस में मौन सर झुकाए खड़े थे। आज सुबह
संगीत साहित्य के मौन साधक संगीत शिरोमणि, वेदमणि सिंह ठाकुर नहीं रहे ब्रम्ह लीन हो गए।संगीत की स्वर लहरियां,तबले की थाप, ब्रम्हनाद की गूंज ब्रह्म में लीन हो गई। संगीत साहित्य का मौन साधक सदा के लिए मौन हो गया।संगीत साधना के एक युग का अंत हो गया।*
मैं अभी पुणे महाराष्ट्र में हूं। मुझे यह दुखद समाचार प्राप्त हुआ। संपूर्ण संगीत, साहित्य, पत्रकार,राजनीति, व्यवसायी, सामाजिक बिरादरी,विद्यार्थी,जनमानस में शोक की लहर दौड़ गई। स्तब्ध हैं।वेदमणि सिंह ठाकुर रायगढ़ नहीं छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के गौरव थे। भारतीय संगीत जगत में उनकी रचनाएं, नोट्स, बंदिशे बड़े बड़े संगीत साधक पढ़ते और प्रयोग करते हैं। एशिया के एक मात्र संगीत कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ में आपके शिष्य, गुरु और प्रभारी पद पर आसीन रहे। अब स्मृतियों में खोना ही शेष रह गया। उनकी परंपरा निरंतर गतिमान हो जीवंतता को प्राप्त होगी उनके योग्य शिष्यों की गुरुनिष्ठा और साधना तपस्या के समर्पण से।
संगीत शिरोमणि वेदमणि सिंह ठाकुर के सतत संगीत साधना व तपस्या से ही अब तक भारतीय संगीत गंगा यहां प्रवाहित है ।चक्रधर समारोह के संस्थापक सदस्यों के आप गुरु हैं।आप ही चक्रधर समारोह के असली शिल्पी हैं।आपके शिष्यों की एक समृद्ध सुदीर्घ सूची है। एशिया के एकमात्र संगीत कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ में बहुत से गुरु आपके शिष्य रहे हैं और हैं।देश विदेश में कई शिष्य भारतीय संगीत और देश का परचम शान से फहरा रहे हैं। सम्मान,अलंकरण और पद प्रतिष्ठा आपके डेहरी में सर झुकाए खड़े रहते हैं।आप अपनी साधना और तपस्या की मस्ती में सदा लीन रहते थे।
लगभग सन 1970 में आपको फिल्म डिवीजन से आमंत्रण मिला तब ऋषि तुल्य आपके पिताश्री मूर्धन्य पखावज वादक जगदीश सिंह ‘ दीन ‘ मृदंगार्जुन ने यह कहकर अनुमति नहीं दी कि -“संगीत साधना को जीविकोपार्जन का साधन नहीं बना सकते।” संगीत को इतने श्रेष्ठ स्थान पर इतनी पवित्रता के साथ रखने और मानने वाले विरले होते हैं।
वेदमणि ठाकुर जी सरस्वती पुत्र हैं।संगीत और साहित्य दोनो में समान अधिकार है।तबला,गायन एवं सितार में प्रवीणता के साथ प्रयाग संगीत इलाहाबाद से उत्तीर्ण,प्रयाग संगीत इलाहाबाद की संगीत मासिक पत्रिका के विशेषज्ञ लेखकों में सम्मान ,उन्हें विशेष संगीत समारोह में “संगीत शिरोमणि” के अलंकरण से नवाजा गया।
वास्तव में गुरु मात्र देह नहीं प्राण है। आपके शिष्यों की समृद्ध सूची है रायगढ़ और छत्तीसगढ़ ही नहीं विदेशों में भी आपके शिष्य हैं जो आपकी परंपरा को पूरी गौरव गरिमा के साथ निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे। आपकी साधना और शिक्षा को जीवंतता प्रदान करते रहेंगे।।
एक दिन पूर्व याने 08जून को उनकी प्रकाशित रचना
टहलने जब भी जाया करिए
इस गली में भी आया करिए।।
छुपा के रखिए न दिल की दौलत
कुछ तो खैरात लुटाया कीजिए।।
गरीब प्यार के भूखे होते हैं
प्यार से उनको मनाया करिए।।
हम सुनाएंगे ग़ज़लें बेदम
आप तशरीफ तो लाया करिए।।
गुरु जी आपको सादर कोटि कोटि नमन करते हुए विनम्र श्रद्धां सुमन अर्पित है।
आपका शिष्य
गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़।
प्रवास पुणे महाराष्ट्र।।