विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून ###पर्यावरण प्रदूषण पूरे वैश्विक जैवजगत के लिए गंभीर खतरा

विश्व पर्यावरण दिवस एक वैश्विक कार्यक्रम है जिसे पर्यावरण संरक्षण के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 05 जून को मनाया जाता है। इस दिन, स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के कई लोग वैश्विक पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए एकत्रित होते हैं।1972 में पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने की थी।
पर्यावरण प्रदूषण पूरे वैश्विक जैवजगत के लिए गंभीर ख़तरा है –
जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।तभी से ही यह समुद्री प्रदूषण, अधिक जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग, टिकाऊ विकास और वन्यजीव अपराध जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने का एक वैश्विक मंच बना । जिसमें सालाना 143 से अधिक देशों की भागीदारी होती है। प्रत्येक वर्ष, कार्यक्रम ने पर्यावरणीय कारणों की वकालत करने के लिए व्यवसायों, गैर सरकारी संगठनों, समुदायों, सरकारों, मशहूर हस्तियों और प्रबुद्ध जनमानस के लिए एक थीम और मंच प्रदान किया है।लगभग 52 वर्ष हो रहे हैं । इन 52 वर्षों पर्यावरण और वैश्विक जीवजगत के सरंक्षण के प्रति जागरूकता तो बढ़ी है किंतु सबसे आश्चर्य और चिंता की बात यह है कि पर्यावरण प्रदूषण और उससे उत्पन्न होने वाली ग्लोबल वॉर्मिंग केख़तरे और अधिक बढ़ते जा रहे हैं।यदि इसपर नियंत्रण नहीं कियागया तो पूरे विश्व के जैवजगत के लिए बहुत बढ़ा ख़तरा होगा ।
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 का थीम है: “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत”-
यह एक वैश्विक संदेश देता है कि अब वह समय आ गया है जब मनुष्य और प्रकृति के बीच खोए हुए संतुलन को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए। इस वर्ष, विश्व पर्यावरण दिवस 2025 का थीम है: “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” ।
प्लास्टिक प्रदूषण तीन ग्रहों के संकट के घातक प्रभावों को और बढ़ा देता है: जलवायु परिवर्तन का संकट , प्रकृति, भूमि और जैव विविधता का नुकसान , तथा प्रदूषण और कचरे का संकट । वैश्विक स्तर पर, अनुमान है कि हर साल 11 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है, जबकि कृषि उत्पादों में प्लास्टिक के उपयोग के कारण सीवेज और लैंडफिल से मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक जमा हो जाता है। प्लास्टिक प्रदूषण की वार्षिक सामाजिक और पर्यावरणीय लागत 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच है ।
मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन बनाये रखने की ज़रूरत है-
जलवायु परिवर्तन लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करता है। सुरक्षित पेयजल, स्वच्छ हवा, पोषक तत्वों से भरपूर भोजन की आपूर्ति और रहने के लिए सुरक्षित स्थान सभी खतरे में हैं, और यह वैश्विक स्वास्थ्य में दशकों की प्रगति को कमजोर कर सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण परिवर्तन के कारण 2030 से 2050 के बीच मलेरिया, कुपोषण, गर्मी से होने वाले तनाव और दस्त के कारण 2,50,000 से अधिक मौतें होने का अनुमान है । इसके अलावा, यह अनुमान लगाया गया था कि वैश्विक मृत्यु का 24% पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित है, इसके बाद खाना पकाने के ईंधन से निकलने वाले इनडोर धुएं के कारण 32 लाख मौतें और धूल, धुएं आदि के संपर्क में आने से 42 लाख मौतें होती हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के और अधिक क्षरण को रोकने के लिए, प्रकृति की सुरक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोगात्मक, परिवर्तनकारी कार्रवाई की आवश्यकता है।
वायु प्रदूषण: स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा –
वायु प्रदूषण: इसे मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा माना जाता है। 2018 में डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार, दस में से नौ व्यक्ति स्वीकार्य प्रदूषित बाहरी हवा में सांस लेते हैं, और दुनिया भर में 70 लाख लोग बाहरी और आंतरिक वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं। पांच साल से कम उम्र के लगभग 5,70,000 बच्चे हर साल सेकेंड हैंड स्मोक, इनडोर और आउटडोर वायु प्रदूषण और निमोनिया जैसी सांस की बीमारियों से मरते हैं।
कचरा प्रबंधन: विश्व बैंक की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि दुनिया में 224 करोड़ टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है। जनसंख्या विस्तार और शहरीकरण के कारण 2050 में वार्षिक कचरा उत्पादन में 73% (224 से 388 करोड़ टन) की वृद्धि होने का अनुमान है।
प्लास्टिक कचरा: यह वर्तमान में दुनिया को प्रभावित करने वाली प्रमुख समस्याओं में से एक है, जिसके दूरगामी प्रभाव हैं। यह वन्यजीवों, विशेष रूप से समुद्री प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। सदी की शुरुआत (2000) के बाद से, दुनिया भर में उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा दोगुनी हो गई है, जो 2021 में सालाना लगभग 40 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुँच गई है।
मासिक धर्म स्वच्छता: सैनिटरी पैड में 90% तक प्लास्टिक हो सकता है, जिसका अधिकांश हिस्सा लैंडफिल में फेंक दिया जाता है। पर्यावरण संगठन टॉक्सिक्स लिंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर सावरणल 1230 करोड़ से ज़्यादा पुराने सैनिटरी पैड लैंडफिल में फेंक दिए जाते हैं। इन सिंथेटिक सैनिटरी पैड को सड़ने में 250 से 800 साल लगते हैं।
पर्यावरण संरक्षण हमारे ग्रह, समुदायों जैवजगत और अर्थव्यवस्था की आधारशिला है,इसका संरक्षण अति आवश्यक है –
लेकिन यह केवल वायु प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक अपशिष्ट और मासिक धर्म स्वच्छता तक ही सीमित नहीं है, ताकि प्रकृति के साथ दीर्घकालिक स्थायी सामंजस्य स्थापित किया जा सके।जलवायु परिवर्तन लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करता है। सुरक्षित पेयजल, स्वच्छ हवा, पोषक तत्वों से भरपूर भोजन की आपूर्ति और रहने के लिए सुरक्षित स्थान सभी खतरे में हैं, और यह वैश्विक स्वास्थ्य में दशकों की प्रगति को कमजोर कर सकता है।पर्यावरण संरक्षण हमारे ग्रह, समुदायों,जीवजगत और अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए आधारशिला है। यदि इसे संरक्षित नहीं किया जाता है, तो गंभीर प्रभाव हो सकते हैं, आश्रय के लिए स्थान की अनुपलब्धता,वनों की कटाई,वैश्विक तापमान में वृद्धि,हवा की ख़राब गुणवत्ता,प्रजातियों का लुप्त होना,प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि गंभीर ख़तरों से बचने के लिए कारगर निर्णायक कदम उठाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया।
पर्यावरण प्रदूषण भारत की स्थिति चिंता जनक –
भारत की पर्यावरणीय समस्याओं में विभिन्न प्राकृतिक खतरे, विशेष रूप से चक्रवात और वार्षिक मानसून बाढ़, जनसंख्या वृद्धि, बढ़ती हुई व्यक्तिगत खपत, औद्योगीकरण, ढांचागत विकास, घटिया कृषि पद्धतियां और संसाधनों का असमान वितरण हैं और इनके कारण भारत के प्राकृतिक वातावरण में अत्यधिक मानवीय परिवर्तन हो रहा।भारत में वायु प्रदूषण एक सतत् सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है, जो प्रतिवर्ष लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। यह केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बहुआयामी चुनौती है जो स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है।
भारत में वायु प्रदूषण: IQAir की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत 5 वाँ सबसे प्रदूषित देश है, जिसका औसत PM2.5 स्तर 50.6 µg/m³ है, जो WHO की सुरक्षित सीमा (5 µg/m³) से 10 गुना अधिक है।दिल्ली सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है, जबकि बर्नीहाट (असम-मेघालय सीमा) विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है।वैश्विक प्रदूषण सूची में भारत शीर्ष पर है, जहाँ शीर्ष 10 में से 6 शहर तथा शीर्ष 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत के हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर 99% आबादी प्रदूषित वायु में साँस लेती है, तथा निम्न और मध्यम आय वाले देश इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों में श्वसन संक्रमण, फेफड़े के रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD), अस्थमा, हृदयाघात और जठरांत्र संबंधी समस्याएँ शामिल हैं।
समाधान हेतु बहुत से कार्यक्रम और योजनाएँ बनाई गई ,जिस पर पूरी ईमानदारी केसाथ सख़्त कार्यवाही करने की ज़रूरत है । विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के साथ भी समन्वय स्थापित कर कार्ययोजना को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।लोगों में जागरूकता तो बढ़ी है पर राज्य कल्याणकारी नीतियों की उपेक्षा तथा पूँजीपतियों उद्योगपतियों और कोरपोरेट्स के हितों संरक्षित करने की कोशिस में अंधाधुंध औद्योगिकीकरण से भी संकट बढ़ा है।इससे सरकारों को बचना होगा। कई राज्यों में तो जनता गाँव, जंगल,जल व ज़मीन को बचाने के लिए सरकार के ख़िलाफ़ लड़रही है।
सरकारऔर जनता के साझा प्रयासों से समस्याओं का उचित समाधान निकाला जा सकताहै। विकास की हर नीति में मानव मूल्य और जीव जगत की सुरक्षा सन्निहित होना ज़रूरी है।
गणेश कछवाहा
लेखक,चिंतक एवं समीक्षक
रायगढ़,छत्तीसगढ़।
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gp.kachhwaha@gmail.com
