31जुलाई बनोरा आश्रम के 30वें स्थापना दिवस पर विशेष …

31 जुलाई
बनोरा आश्रम के 30वें स्थापना दिवस पर विशेष —
“अघोर कोई पंथ नहीं पथ है।”
मानवता व आदर्श चरित्र के निर्माण का आध्यात्मिक शक्ति पीठ है आश्रम बनोरा।
बनोरा अर्थात बनो राम का पर्याय व आस्था का पवित्र अघोर धाम।
गणेश कछवाहा,रायगढ़**
साधु ,संतो ,ऋषि मुनियों की तपस्या,साधना,श्रम व आश्रय स्थली को आश्रम कहा जाता है। यहां की हर वस्तु सीखने सिखाने के योग्य होती है। पेड़ पौधे , कण कण, तपस्या ,योग,साधना व श्रम से सब पूज्यनीय हो जाते हैं। यहीं से वेद, पुराण, उपनिषद् ,शास्त्र आदि जन्म लिए । समाज और जीवन जीने की आदर्श शैली ,मानव सभ्यता का मंत्र मानव ने यहीं से सीखा।
अघोरेश्वर महाप्रभु भगवान राम जी के अनुशासित परम प्रिय शिष्य ,औघड़ संत बाबा प्रियदर्शी राम जी के श्रीचरण कमल 31 जुलाई 1993 को छत्तीसगढ़ के सुरम्य प्रकृति से आच्छादित वनांचल बनोरा जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़ में प्रतिस्थापित हुए। अपने गुरु के आदर्शों को संजोए बाबा जी घास फूंस पत्तों की एक छोटी सी कुटिया बनाकर “अघोरान्ना परो मंत्रः,नास्ति तत्वम गुरो परम।।” अलख जगाते हुए अघोर साधना में लीन हो गए।
अपने गुरु परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम के 19 सूत्रीय कार्यक्रमों में से प्रमुख शिक्षा , स्वास्थ्य , नशा,कुरीतियों ,सामाजिक बुराइयों को दूर करने , ग्रामीण जनों के उत्थान एवं एक आदर्श और चरित्र निर्माण को गढ़ने के कार्यक्रमों को ग्रामीण जन के सहयोग से शनैः शनैः गति प्रदान करते गए । वर्तमान में आज बनोरा “मानवता व आदर्श चरित्र के निर्माण का आध्यात्मिक केंद्र व अघोर शक्ति पीठ बन चुका है।बनोरा अर्थात बनो राम का पर्याय हो गया है।”
अघोर परंपरा में “गुरु का स्थान सर्वोच्च होता है” अघोर साधना बहुत सुगम और सहज है। पूज्य गुरुदेव जी बाबा प्रियदर्शी राम जी ने अपने गुरु परमपूज्य श्री अघोरेश्वर भगवान राम जी के आदर्शों व आचरण को अनुशासन बद्ध हो आत्मसात करते हुए उनके बताए पगडंडी को अपने जीवन का परम लक्ष्य बनाया।अघोरेश्वर महाप्रभु सदैव सिखाया करते थे की “मानव सेवा और समाज व राष्ट्र की सेवा गढ़े हुए देवता की पूजा से महान है।” वे स्वयं कुष्ठ रोगियों की सेवा किया करते थे। मानवता और समाज सेवा का सर्वश्रेष्ठ अद्वितीय उदाहरण ग्रीनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज़ है।कुष्ठ सेवा आश्रम में कुष्ठ रोगियों की सेवा आज भी निरंतर जारी है।
गुरुदेव की अघोर साधना से बनोरा आश्रम के बाद क्रमशः डभरा,शिवरीनारायण,रेणुकोट,अंबिकापुर, चिरमिरी (सरगुजा),जिगना आदि स्थानों पर अघोर आश्रम साधना स्थली बनाई और अनुयायियों ने भी अपने अपने घर और आसपास के क्षेत्रों में अघोर परंपरा का पवित्र वातावरण बनाया है। गुरुदेव के हर साधना स्थली (आश्रम) से मानव सेवा,समाजसेवा के अद्वितीय कार्य किए जा रहे हैं। गत वर्ष 2022 में परमार्थ सेवा आश्रम इलाहाबाद उत्तर प्रदेश द्वारा गुरुदेव “बाबा प्रियदर्शी राम मानव कायाकल्प सेवा” का अदभुत कार्य किया गया।जिसमे पूरे अनुशासन बद्ध टीम बनाकर डॉक्टर इत्यादि साथ में रहकर मैले कुचैले कपड़े ,बाल दाढ़ी बड़े हुए लोगों तथा अस्वस्थ रोगियों की पहचान कर उन्हें नहला धुला कर, बाल दाढ़ी बनाकर साफ सूथरे कपड़े पहना कर उन्हे जल पान भोजन इत्यादि प्रदान कर उनका कया कल्प किया जा रहा है।जो अस्वस्थ या रोगी हैं उनका स्वास्थ्य चेकअप कर उनका इलाज किया जा रहा है।
इस वर्ष 2023 में डभरा, जिगना और बनोरा आश्रम में मेघा विशाल स्वास्थ शिविर लगाए गए। हजारों लोगों ने स्वास्थ लाभ उठाया।बहुत विद्वान अनुभवी ,कुशल और विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ,पैथालॉजी की सुविधा और मानक क्वालिटी की निःशुल्क दवा आदि की उत्तम व्यवस्था की सुनिश्चित की गई थी।जिसे सभी वर्गों ने काफी सराहना की। ग्रीष्म काल में भीषण गर्मी से राहगीरों की आत्मा को शीतलता और राहत मिल सके, इसके लिएअघोर पीठ ट्रस्ट बनोरा द्वारा *अवधूत कृपा शीतल पेय जल की उत्तम व्यवस्था की जाती है। बहुत ही सभ्य शालीन व अनुशासन के साथ सवच्छ शुद्ध शीतल जल और गुड़ की व्यवस्था सुनिश्चित की गई।शीत ऋतु में वृद्ध एवं असहाय जनों को कंबल,वस्त्र आदि प्रदान किए जाते हैं।प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़ आदि समय में प्रभावित क्षेत्रों में विशेष शिविर लगाकर जीवन यापन हेतुआवश्यक सामग्री वस्त्र,भोजन, दवा आदि की व्यवस्था भी बनोरा ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी श्री अघोरेश्वर विद्या मंदिर की आदर्श एवं सर्व संसाधनों सुविधाओं से युक्त व्यवस्था कर विद्यार्थियों को उत्तम ,संस्कारयुक्त उच्च आदर्श शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है।विद्यार्थी अच्छे नंबरों और प्रवीणता सूची से उत्तीर्ण हो कर समाज का नाम रोशन कर रहे हैं। यह सब परम पूज्य श्री गुरुदेव जी की घोर तपस्या,अघोर साधना के प्रति असीम जन आस्था ,विश्वास और श्रद्धा का अनुपम प्रतिफल है जो केवल अघोरेश्वर महाप्रभु की अहैतुक कृपा से संभव है।
अघोर कोई पंथ नहीं पथ है।बहुत ही सहज और सरल है। वेदों में लिखा है “अघोर से बड़ा कोई मंत्र नही और गुरु से बढ़ा कोई तत्व नहीं।” अघोरन्ना परो मंत्रः, नास्ति तत्वम् गुरो परम।। वर्णाश्रम व्यवस्था अलग यह एक आश्रम है। सभी वेद-पुराण आश्रमों में ही लिखे गये, यह औघड़ का आश्रम है। यहाँ वर्णाश्रम (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास) नहीं होता है। सिर्फ आश्रम होता है।आश्रम परिधि के अन्दर सीखने तथा सिखाने लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होती है।
आश्रम परिसर में प्रवेश करते ही एक दिव्य ,शांत, अलौकिक , मनोहारी और सकारात्मक ऊर्जा से मन मस्तिष्क आल्हादित हो उठता है। पंजी में नाम दर्ज करते ही अनुशासन से मन अनुप्रेरित स्व अनुशासन बद्ध हो जाता है।प्रवेश द्वार के बाएं ओर अघोर साहित्य केंद्र,आगे बाऐं ओर दवाखाना जहां रोगियों को दुआ के साथ दवा निःशुल्क प्रदान की जाती है। उपासना स्थल और मां गुरु निवास की ओर जैसे बढ़ेंगे चारों ओर फूल,पौधों,वृक्षों की मनोहारी आकर्षक शीतल वायु मन मस्तिष्क अदभुत शांति और शीतलता प्रदान करती है। वहीं अघोरेश्वर की अमृत वाणी या कहें अनमोलअघोर वचन की पट्टिकायें अध्यात्म की पवित्रता और जीवन के सत्यता की गहराइयों में डूबो कर हृदय को अति पवित्र और आनंदित कर देती है। श्री गणेश पीठ उसके सामने हवन कुंड दृश्य को रमणीय बना देती है।सामने मनोरम उपासना स्थल जहां परम पूज्य श्री अघोरेश्वर की दिव्य प्रतिमा , मां गुरु की चरण पादुका की स्थापित है।कोई पंडित पुजारी नहीं , कोई छोटा बड़ा नहीं,किसी प्रकार का कोई भेद नहीं पूर्णतः अभेद है।पूज्य बाबा जी का मानना है की “पूजा भाव से की जाती है। शक्ति की पूजा करो,सामग्री की नहीं।”* यह सब देखकर अध्यात्म की पवित्रता से हृदय पावन पवित्र हो जाता है और एक सकारात्मक ऊर्जा व शक्ति का संचार कर देता है।*
मां गुरु निवास स्थल जहां अनुयाई भक्त अनुशासन बद्ध होकर पूरी श्रद्धा समर्पण से शरणागत होकर प्रणाम करते और आशीर्वाद तथा कृपाकांक्षी हो कृत कृत होते हैं। कुछ लोग केवल श्री गुरु की उपस्थिति की ही प्रतीक्षा करते हैं इस संबंध में पूज्य श्री अघोरेश्वर महाप्रभु कहते हैं कि –“गुरु देह नहीं , प्राण है।” मेरी आत्मा सदैव आश्रम में निवास करती है।यहां श्री चरण पादुका और प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा स्थापित है। प्राण की पूजा ही सच्ची पूजा है।”
उपासना स्थल के पीछे अघोर साधक की समाधि स्थल है। एक छोटा गौशाला और बहुत विशाल परिसर में साधु,संतों,भक्तों अनुयाइयों के निवास कक्ष की सुविधा ,कार्यालय,सत्संग हाल, अघोरेश्वर विद्या मंदिर आदि की सुव्यस्थित व्यवस्था आनंद , उत्साह और हृदय को पवित्रता से ओतप्रोत कर देती है।विस्तृत लोक को अलौकिक करने वाले ऐसे सच्चे शीलवान साधु बिरले ही मिलते हैं। मां गुरु के श्री चरणों में सादर कोटि कोटि प्रणाम है।
31 जुलाई बनोरा आश्रम के स्थापना दिवस पर मानवता व राष्ट्र कल्याण हेतु गुरु के श्री चरणों में सादर समर्पित है।
गणेश कछवाहा
काशीधाम
रायगढ़ छत्तीसगढ़।
9425572284
gp.kachhwaha@gmail.com