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गर्व और लज्जा का एक साझा दौर …

गर्व और लज्जा का एक साझा दौर…


विगत दस दिनों से देश नये कीर्तिमान गढऩे का इतिहास रच रहा है।चाहे वह अंतरिक्ष से लेकर खेल हो या अन्य क्षेत्र।चाहे वह चन्द्रयान 3 की सफल लैन्डिग हो,नीरज चोपड़ा का भाला फेक हो,रीले रेस मे हमारे खिलाड़ी बच्चों का प्रदर्शन हो या हाकी का एशिया कप पर कब्जा।नीरज चोपड़ा के प्रदर्शन ने तो एक बार पुन: महाराणा प्रताप के भाले की याद दिला दी।
*फेंक जहां तक भाला जाऐ*…..
बेशक भारतीय कुश्ती संघ की मान्यता  रद्द होने से  एक टीस सी जरुर हुई पर यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।कानूनी तौर पर उसे हल करनें के रास्ते भी अवश्य होंगे।मुझे इसकी बेहतर जानकारी नहीं पर यदि हरियाणा कुश्ती संघ कोर्ट नहीं जाता तो यह बात आगे ही नहीं बढती।देर सबेर कोर्ट का फैसला आ ही जाएगा और कुश्ती संघ की मान्यता का मसला भी हल हो जाएगा।यह विश्वास बनाये रखना होगा।
इस बीच बहनों ने रक्षाबंधन भी मनाया पंडितों द्वारा दी गई तमाम विघ्न बाधाओं की थोड़ी अनदेखी सी कर भाईयों की कलाईयों को राखी से सजा दिया।दरअसल भाई और बहन के बीच स्नेह एक अटूट बंधन की तरह  ही होता है।इसलिए स्त्रियां ससुराल की दहलीज मे प्रवेश करने के पश्चात भी अपना मायका कभी नहीं भूल पाती।मायके की स्मृतियों की एक पोटली उनके मन के किसी कोनें मे आखिर तक सुरक्षित रहती है।
ताजातरीन खबरों की माने तो इसरो द्वारा भेजे गये चन्द्रयान का रोवर अब अपने चंदामामा के घर बच्चों की तरह अठखेलियां कर रहा है ऐसी तस्वीरे दिल को सुकून के साथ साथ गर्व का एहसास कराती है। यह एहसास दुगना हो जाता है जब सूर्ययान भी लांचिंग मे सफल हो।इस सफलता हेतु इसरो के तमाम वैज्ञानिको की अथक मेहनत और प्रयास के साथ देश के कुशल नेतृत्व को को नकारा नहीं जाना चाहिए।
 अब बात करें शिक्षक दिवस और साक्षरता दिवस की।शिक्षक दिवस को भी हम औपचारिक तौर पर मना लेंगे।इस दिन शिक्षक या शिक्षकीय पेशे को महिमामंडित किया जाएगा लेकिन हकीकत यह है कि शिक्षक या गुरु की यह गरिमा क्रमश: खंडित ही होती जा रही है।क्यों???इस पर शिक्षक या समाज के बुद्धिजीवियों को गहराई से सोचने की जरूरत है।अपने ही शहर के अभियान्त्रिकी महाविद्यालय के हड़ताल कर रहे सभी शिक्षकों से मुझे सहानुभूति है।महज अपने कार्य का मेहनताना पानें की आस लिये हड़ताल कर रहे शिक्षक और शासन द्वारा उचित कार्यवाही का आश्वासन न दे पाना दुखद है।माननीय उच्चशिक्षा मंत्री उमेश पटेल और हमारे विधायक प्रकाश नायक  से यही निवेदन कि या तो इसे बन्द कर दिया जाए यि फिर शासनाधीन कर दें।यदि चन्दूलाल चंद्राकर मेडिकल कालेज शासनाधीन हो सकता है तो यह क्यों नहीं?किसी भी संस्था को शासनाधीन करना उसे बन्द करने से  कम जटिल है।

जहां तक साक्षरता दिवस की बात हो तो यह महज आकड़ों का खेल बन कर रह गया है।किसे कहेंगे हम साक्षर या शिक्षित?यक्ष प्रश्न है।मणिपुर के बाद राजस्थान मे हुई घटना स्तब्ध कर देती है या कहें कि झकझोरते हुए पूरी सामाजिक व्यवस्था पर एक प्रश्नचिन्ह भी खड़ा कर देती हैं।किस कबिलाई मानसिकता का दौर चल रहा है इस देश में वह भी इक्कीसवीं सदी के तेइसवें वर्ष से गुजरते हुए। स्त्रियां अमूमन हर देश में हर काल खंड मे एक सी होती हैं। समय के हिसाब से स्त्री ने खुद को बदला है पर उसके मौलिक गुण जैसे सृजनात्मकता और संवेदनशीलता आज भी बनें हुए हैं लेकिन औसत पुरुष आज भी अपनी कबिलाई मानसिकता से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है।इसलिए गाहेबगाहे उसकी यही मानसिकता स्त्री को वस्तु मानते हुए व्यक्त होती रहती है।

आशा त्रिपाठी

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