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धान के पैरा जलाने की रोकथाम हेतु पैडी बेलर से बंडल बनाने का जीवंत प्रदर्शन

धान के पैरा जलाने की रोकथाम हेतु पैडी बेलर से बण्डल बनाने का जीवन्त प्रदर्शन

रायगढ़, 22 दिसम्बर2023/ निकरा परियोजना अतंर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, रायगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.बी.एस.राजपूत के मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में निकरा ग्राम नवापारा विकास खण्ड खरसिया में धान के कटाई के बाद पैरा जलाने का प्रचलन है, जिसके रोकथाम हेतु एक मुहिम चलाते हुए वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को समझाईश दी गयी कि अगर पैरा का उचित प्रबंधन किया जाये तो इसके जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव एवं हानि को कम किया जा सकता है एवं उचित प्रबंधन से इसको बहुउपयोगी संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। केन्द्र निकरा परियोजन के सहअनुवेषक एवं मृदा वैज्ञानिक डॉ.के.डी.महंत ने किसानों को कहा पैरा जलाने से कार्बन तत्व की काफी मात्रा जलकर नष्ट हो जाता है साथ ही पैरा जलाने से लगभग 150 मिलीयन टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में मुक्त होता है, 9 मिलीयन टन कार्बन मोनोऑक्साइड, 0.25 मिलीयन टन सल्फर डाई ऑक्साइड, 1.28 मिलीयन टन पार्टीकल पदार्थ एवं 0.07 मिलीयन टन काला कार्बन रिलीज होता है जो पर्यावरण प्रत्यक्ष रूप से प्रदूषित करता है। साथ उन्होंने यह भी बताया पैरा जलाने से 1 से.मी. गहरी मिट्टी का तापमान लगभग 33.8 डि.से. से 42.2 डी.से. तक बढ़ जाता है। फलस्वरूप जैविक कार्बन की हानि मित्र कीड़ो एवं सूक्ष्म जीवाणुओं का नष्ट हो जाना तथा मिट्टी की घुलनशीलता क्षमता को कम कर देती है। उन्होंने बताया कि 1 टन फसल अवशेष जलाने पर 5.5 कि.ग्रा नाईट्रोजन, 2.3 फास्फोरस, 25 कि.ग्रा. पोटेशियम एवं 1 कि.ग्रा. सल्फर तत्व नष्ट हो जाते है इसलिए पैरे का सही प्रबंधन अति आवश्यक होता है। पैरा जलाने की समस्या के रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु निकरा परियोजना के वरिष्ठ अनुसंधान सहायक डॉ. मनोज साहू के विशेष प्रयास पर पैडी बेलर मशीन द्वारा बण्डल बना कर पैरा बहुपयोगी बनाने हेतु जीवन्त प्रदर्शन किया गया, डॉ. साहू ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि धान के कटाई के बाद बिखरे पैरा को जलाने के बजाय बेलर मशीन से बण्डल बनाकर मिट्टी में पाये जाने असंख्य सूक्ष्म जीवों को खेती में उपयोग कराया जा सकता है जो भूमि उर्वरा शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है यह मशीन उपयोग में बहुत की सरलता से 1 घंटे में 1 से 1.5 एकड़ का पैरा बण्डल बनाकर तैयार कर देता है। बण्डल बने पैरे का उपयोग मशरूम उत्पादन, पशुओं के चारा तथा जैविक मल्चिंग के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह कार्यक्रम गांव के सरपंच प्रतिनिधी श्री प्रेमसिंह सिदार, कृषि विभाग के विस्तार अधिकारी श्री अनिल भगत, कृषि अभियंत्री विभाग, रायगढ़ एवं ग्राम के लगभग 30 किसानों की उपस्थिति में सफल हुआ।

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