अघोर गुरुपीठ ब्रम्ह निष्ठालय बनोरा 32 वा स्थापना दिवस

कामयाबी का लाभ पीड़ितों शोषितों वंचितों को दिए जाने का आह्वान :- बाबा प्रियदर्शी राम जी…32 वर्षों की यात्रा के दौरान परिणामों को देख पूज्य पाद ने कहा स्थापना का सपना हो रहा साकार…जीवन के हर क्षेत्र का युद्ध जीतने के लिए चारित्रिक बल की अवश्यकता

रायगढ़ ।अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा के 32 वे स्थापना दिवस पर पूज्य पाद बाबा प्रियदर्शी राम जी ने कहा जिन उद्देश्यों को लेकर स्थापना की गई थी वे उद्देश्य पूरे हो रहे है। जन सहयोग से चलने वाली इस संस्था को मिलने वाले सहयोग से पीड़ित मानव की सेवा की जाती है । मध्यम वर्गीय मजदूर किसान भी संस्था को सहयोग देते है। आध्यात्मिक उपदेशों के दौरान बाबा प्रियदर्शी राम जी ने जीवन के वास्तविक लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा मनुष्य जीवन और पशु जीवन में असल भेद यही है। मनुष्य अपनी सफलता का लाभ समाज को वितरित कर सकता है लेकिन पशु वितरित नहीं करता। बाबा जी के कहा जीवन में कामयाबी हासिल करने का लाभ समाज के पीड़ित शोषित लोगों का ना मिले तो यह कामयाबी निरर्थक है मानव जन्म लेकर केवल अपने लाभ के लिए सोचना मानवता नहीं बल्कि इस तरह का जीवन उन निरही पशुओं के समान है जो मनुष्य की तरह जन्म लेते है खाते पीते बच्चे को जन्म देकर मर जाते है । जीवन को महान बनाने के लिए पूज्य पाद ने चरित्र निर्माण की आवश्यकता पर जोर देते हुए रावण सर्व शक्ति मान बलशाली था जब उसका युद्ध वनवासी राम से हुआ तो रावण युद्ध सिर्फ इसलिए हार गया क्योंकि राम के चरित्र बल के समाने बहुत कमजोर था अन्यथा उस युग में रावण अजेय योद्धा माना जाता था। आस पास के लोगों के नैतिक बल की सराहना करते हुए कहा कि 32 वर्ष पूर्व मैने संस्था की स्थापना को लेकर जो सपना देखा वो साकार होता नजर आ रहा है। तीन दशक पहले इस क्षेत्र में आगमन का संस्मरण साझा करते हुए बताया कि सामुदायिक भवन में ग्राम वासियों से जरूरत के संबंध में पूछा तो उन्होंने स्कूलों की मौजूदगी के बाद भी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा हेतु स्कूल की आवश्यकता जताई और संस्था के नींव स्कूल के निर्माण से रखी गई। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के साथ साथ बच्चों में संस्कार के बीजारोपण को महत्व दिया गया । सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की दिशा में सार्थक प्रयास किए गए ऐसी कुरीतिया मनुष्य को स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ने से रोकती है। समाजिक बुराई जुआ सट्टा नशाखोरी को दूर करने की दिशा में प्रयास करते हुए आध्यामिक विकास की दिशा में बहुतेरे प्रयास किए गए ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके और एक छोटी इकाई के रूप में गांव में बसने वाला मजदूर किसान भी राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका निभा सके। लड़कों की तुलना में लड़कियों के अधिक सफल होने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा लड़कों की तुलना में लड़कियों में पठन पाठन के लिए आवश्यक अनुशासन एवं समय का प्रबंधन अधिक श्रेष्ठ होता है। शिक्षा के प्रति लड़कियों की लगन उन्हें लड़कों की तुलना में अधिक सफल बनाती है । संस्था के स्कूल सहित प्रदेश स्तर के स्कूलों का परिणाम देखा जाए तो लड़कों की तुलना में लड़किया अधिक सफल है । महान बनने के लिए अनुशासन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा स्कूली शिक्षा पढ़ाई के साथ साथ समय से उठना,समय से स्कूल जाना, माता पिता गुरु जनों का आदर करना, साफ सफाई रखना, जैसे सामान्य अनुशासन के गुणों को विकसित करती है स्कूल के नियमों का अनुकरण करते हुए छात्र अनुशासन आसानी से सीख जाता है । और यही बच्चा अनुशासन के जरिए भविष्य का अच्छा नागरिक बनकर स्कूली जीवन में सीखे गए अनुशासन को जब अपने जीवन में उपयोग में लाता है तो देश भी महान बन जाता है। पालकों से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा बच्चों के अन्दर अपार क्षमता एवं संभावनाएं मौजूद है बस उन्हें समझकर दिशा देने की जरूरत है। जैसे कुम्हार गीली मिट्टी को मनचाहा आकार दे सकता है उसी तरह माता पिता अपने बच्चों को मनचाहे आकार में गढ़ सकते है इसके लिए बच्चों को पर्याप्त समय दिए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मोबाइल के अधिक इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा माता पिता को मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करते हुए देख कर बच्चे भी मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करने लगे है मोबाइल के इस्तेमाल से अधिक और निरर्थक सूचनाएं बाल्य मन के लिए घातक होती है। मोबाइल के अधिक उपयोग से समाज में बहुत सी नई नई विसंगतियां पैदा हो रही है। बच्चों के माता पिता से अपील करते हुए पूज्य बाबा ने कहा अमीरी गरीबी पढ़ाई में बाधक नहीं होती बल्कि शिक्षा के प्रति उदासीन मानसिकता घातक है। ऐसा दौर भी रहा जब पढ़ाई के साधन अधिक नहीं होने की वजह से लोग पढ़ाई से वंचित रह जाते थे ऐसे माता पिता जो साधनों के अभाव में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ घर में बच्चे के लिए उपयुक्त वातावरण बनाए । शिक्षित बच्चा आने वाली पीढ़ी को भविष्य में अंधकार मय होने से बचा सकता है । माता पिता को बच्चों की पहली पाठशाला बताते हुए कहा बच्चों में संस्कार के बीजारोपण की शुरुआत घर से शुरू होनी चाहिए माता पिता के अनुशासन का असर बच्चों में स्वाभाविक रूप से नजर आता है। बच्चों के अन्दर सभी आठ संस्कार नामकरण अन्न प्रासन्न,मुंडन,शिक्षा,विवाह संस्कार समय के साथ पूरा करना चाहिए ताकि इन संस्कारो के जरिए बच्चों को जीवन के उद्देश्य का बोध होता रहे। स्कूली छात्रों को संगत का महत्व समझाते हुए बाबा जी ने कहा जीवन में मित्रों का चयन बहुत ही सोच समझ कर करना चाहिए बुरी संगत ही बुरी आदतों को जन्म देने का कारण बन जाती है मित्रो की संख्या कम हो और सही हो इसे आवश्यक बताते हुए कहा स्वयं से अधिक नंबर लाने वाले से मित्रता लाभ प्रद हो सकती है।शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों का जीवन बुरी संगत से प्रभावित हो सकता है। लक्ष्य प्राप्ति की साधना में सबसे बड़ी बाधा कुसंगति को बताया। माता पिता को बच्चों को संगत पर नजर बनाए रखना चाहिए और उन्हें उचित मार्गदर्शन देना चाहिए ताकि वे अपने बच्चे का भविष्य अंधकार मय होने से बचा सके और वह भविष्य के लिए अच्छा नागरिक बना सके । जैसा संग वैसा रंग की बहुत सी मिशाल है। जीवन में पुरुषार्थ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पूज्य पाद प्रियदर्शी ने कहा आश्रमों में संतों का सानिध्य और उनका मार्गदर्शन मनुष्य को जीवन के वास्तविक लक्ष्य से परिचित कराता है । संतो की आध्यात्मिक प्रेरणा जीवन जीने की सही विधि बताती है । उनके मार्गदर्शन में संसार में रहते हुए जीवन के वास्तविक लक्ष्य को सरलता से से हासिल किया जा सकता है। संचय की मानसिकता से घिरा मनुष्य पूरा जीवन वस्तुओं के संग्रह में निकाल देता है और इसके फेर में वह अपने स्वास्थ्य और नैतिकता को भूल कर नाना प्रकार की परेशानियों से घिर जाता है । संत बताते है संचय की मानसिकता दुखो का कारण है और समाज को देने का भाव या दान का गुण जीवन को आसानी से सुखमय बना सकता है। सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने की सलाह का आशय जंगलों पहाड़ों गुफा में बैठकर तपस्या करना नहीं क्योंकि जंगल पहाड़ गुफा भी इसी संसार का ही हिस्सा है ।पत्नी पुत्र मित्र समाज ही मनुष्य का संसार है और इनके बीच रहते हुए द्वेष ईर्ष्या लोभ क्रोध के बचे रहना ही सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने की सलाह होती है। पूज्य बाबा प्रियदर्शी ने कहा मनुष्य के अंदर असीमित शक्तियां है लेकिन मनुष्य इस चमत्कारिक शक्ति से अनजान है और जो मनुष्य इस शक्ति को समझकर सदुपयोग करता है उसे जीवन का लक्ष्य मिलता है। इसे विस्तार से समझाते हुए कहा एक ही परिस्थिति कमजोर मनुष्य के लिए समस्या है वही परिस्थिति स्थिर दिमाग़ वाले मनुष्य के लिए चुनौती है जबकि वहीं परिस्थिति मजबूत दिमाग वाले व्यक्ति के लिए अच्छा अवसर बन जाती है। हर मनुष्य अपने भाग्य का विधाता है । जो कुछ मनुष्य सोच कर कर्म करता उसके अनुसार ही उसे परिणाम भी मिलता है इसलिए कहा गया है कि श्रेष्ठ चिंतन ही अनुकूल परिमाण मिलने की सबसे बड़ी वजह होती है। संयमित जीवन पर भी प्रकाश डालते हुए पूज्य बाबा ने कहा संयमित जीवन जीकर मनुष्य समाज के लिए अनुकरणीय मिशाल बन सकता है जीवन में केवल धन की उपलब्धता मायने नहीं रखती है। यदि धन सुख का साधन होता तो धनी व्यक्ति कभी दुखी नहीं होता और रुखा सुखा खाकर मेहनत मजदूरी करने वाला मजदूर सुखी नहीं होता। सुख दुख को मनुष्य के मन की अवस्था निरूपित करते हुए कहा किसी भी परिस्थिति में मनुष्य सुखी रह सकता है सुख किसी साधन पर निर्भर नहीं है। समाज में हर किसी की भूमिका अलग अलग बताते हुए कहा कहा सभी को अपनी अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करना चाहिए। एक छात्र के लिए उसकी अपनी अलग भूमिका है अनुशासन में रहते हुए उसे कामयाब होकर अन्य लोगों को काबिल होने का मार्ग बताना है वही माता पिता को अच्छे अभिभावक की भूमिका निभाते हुए बच्चों को भविष्य में एक अच्छा और जागरूक नागरिक बनने बनने के लिए प्रेरित करना है ताकि राष्ट्र निर्माण की यह प्रक्रिया सतत् चलती रहे। शिक्षकों गुरुजनों की अपनी भूमिका है जिससे छात्रों को और मनुष्यों को जीवन में आने वाली परेशानियों से निजात पाने का मार्ग बता सके। सरकारी सेवकों की अपनी भूमिका है बहुत से सरकारी अफसर ऐसे होते है जो जनता को परेशान किए बिना प्राथमिका से उनका काम करते है यह भी एक प्रकार से उनकी भूमिका है उसी तरह राजनीति के नेताओं की अपनी भूमिका है वे जन समस्याओं से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता से सुनकर उसका इस तरह से निदान करे जिससे किसी जनता को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। एक एक ईंट दीवार का निर्माण करती है और यह दीवार मकान का निर्माण करती है भले ही बाहर से मकान भव्य नजर आता हो लेकिन मकान की भव्यता में एक छोटे से ईंट की भूमिका भी होती है। असफलता से निराश लोगों को समझाते हुए पूज्य बाबा जी ने कहा कभी कभी जीवन में परिश्रम के बाद भी मनुष्य मनचाही सफलता हासिल नहीं कर पाता। ऐसी असफलताओं से विचलित होने की बजाय समझना चाहिए कि कार्य के दौरान या तो जीत मिलती है या फिर सीख मिलती है। असफलता के दौरान किया गया परिश्रम व्यर्थ नहीं जाता।यह सीख मनुष्य की जीवन में कभी भी सफल बना सकती है । बहुत से ऐसे उदाहरण है कि अनेकों बार असफल होने वाले लोग अंततः सफल भी हुए। आज की युवा पीढ़ी सुख प्राप्ति के लिए नशा का सेवन के मार्ग का चयन कर रही है जो उनके जीवन को खोखला बना रहा। अधिक खुशी के नाम पर ,तनाव कम करने के नाम पर,थकान मिटाने के नाम पर नशे के सेवन का सहारा लिया जा रहा है नशा खोरी की प्रवृति समाज को खोखला बना रही है इस वजह से अपराधिक घटनाएं सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही नशा सेवन से नाना प्रकार की बीमारियों से मनुष्य घिरता जा रहा । मनुष्य जीवन के नाश की जड़ नशे को बताया। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जाहिर करते हुए पश्चिमी सभ्यता की वजह से नशा भारतीय जीवन शैली का हिस्सा बनता जा रहा है उन्होंने समाज से आह्वान किया कि वे नशे से मुक्त रहते हुए मजबूत राष्ट्र निर्माण में सहभागी बने। जीवन का वास्तविक सुख ध्यान धारणा उपासना ईश्वर की भक्ति में है जिसे मनुष्य भूलता जा रहा है।सफलता की कुंजी हर व्यक्ति के पास है लेकिन वह इससे अनजान है । युद्ध का मैदान हो या जीवन में युद्ध हो इसे चरित्र बल से जीता जा सकता है राम रावण के मध्य हुए युद्ध को मिशाल बताते हुए कहा रावण उस युग का बलशाली राक्षस था नौ ग्रह उसके चरणों में थे उसका युद्ध ऐसे बनवासी राम से था जिसके पास सुसज्जित रथ सेना नहीं था लेकिन उन्होंने शौर्य पराक्रम नैतिकता के बल पर महाप्रतापी रावण को परास्त कर दिया। रावण को अपने ज्ञान, पराक्रम का अहंकार था जबकि राम को अहंकार के दुष्परिणाम का ज्ञान था जिससे उन्होंने यह युद्ध जीत लिया। रामायण महाभारत के प्रसंगों को जीवन के लिए अनुकरणीय बताया।

मानव को गढ़ने की पाठशाला बन गई अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा

तीन दशकों से पूज्य बाबा प्रियदर्शी राम जी की तपस्या का यह सार्थक परिणाम हुआ कि क्षेत्र में शिक्षा का उजियारा फैल पाया । जीवन की भूलभूत आवश्यकता चिकित्सा के लिए संस्था के कार्य मिल के पत्थर साबित हो रहे। पूज्य पाद के आशीर्वचन लोगों के जीवन में बदलाव लाने में मददगार साबित हो रहे है

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