ऑयल पॉम की खेती करने जुड़ रहे किसान

ऑयल पाम की खेती से बढ़ेगी किसानों की आमदनी…छोटे पंडरमुड़ा के तीन किसानों ने शुरू की व्यावसायिक खेती, प्रति हेक्टेयर 3 लाख तक होगी आय…केन्द्र व राज्य सरकार से मिल रहा एक-एक लाख का अनुदान, अंतरवर्तीय फसलों से होगी अतिरिक्त आमदनी

रायगढ़, 15 जुलाई 2025/ कलेक्टर श्री मयंक चतुर्वेदी के मार्गदर्शन में जिले में किसानों की आय बढ़ाने हेतु उन्हें व्यवसायिक खेती से जोडऩे की पहल की जा रही है। इसी क्रम में खरसिया विकासखंड के ग्राम छोटे पंडरमुड़ा में तीन कृषकों ने लगभग तीन हेक्टेयर भूमि पर ऑयल पाम की खेती की शुरुआत की है। उद्यानिकी विभाग के सहयोग से श्री टीकम सिंह राठिया, श्री बलदेव राठिया एवं श्री रामायण सिंह राठिया के खेतों में पाम ऑयल के पौधों का रोपण किया गया। इस अवसर पर जनपद अध्यक्ष खरसिया श्रीमती रामकुमारी राठिया, जनपद उपाध्यक्ष श्री हितेश गबेल, श्री रविन्द्र गबेल, श्री संतोष राठिया, सरपंच श्रीमती सुनीता राठिया, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री एन.पी.सिदार, ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी श्री जय किशन भारद्वाज एवं श्री गजपति साहू उपस्थित रहे।
उद्यानिकी विभाग के अधिकारी ने बताया कि इस योजना के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर 29 हजार रुपये मूल्य के 143 पौधे नि:शुल्क प्रदान किए जा रहे हैं। रोपण, फेंसिंग, सिंचाई, रखरखाव एवं अंतरवर्तीय फसल की समग्र लागत प्रति हेक्टेयर लगभग 3.90 लाख से 4 लाख रुपये तक आती है। इस पर भारत सरकार से 1 लाख तथा राज्य शासन से अतिरिक्त 1 लाख रुपये का अनुदान दिया जाता है। शेष राशि की पूर्ति के लिए किसानों को बैंक ऋण की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा रही है।
ऑयल पाम का उत्पादन तीसरे वर्ष से प्रारंभ होकर 25 से 30 वर्षों तक होता है। पौधे की उम्र बढऩे के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि होती है। एक हेक्टेयर से प्रति वर्ष 15 से 20 टन तक उपज लिया जा सकता है और किसान सालाना ढ़ाई से तीन लाख रुपये तक की आय प्राप्त कर सकते है। ऑयल पाम के पौधे एक निश्चित दूरी में लगाए जाते है जिससे किसान इन पौधों के बीच अंर्तवर्ती फसल लगाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए किसानों को चार वर्षों तक सब्जी या अन्य अंतरवर्तीय फसलों के लिए सब्सिडी के साथ 2 हेक्टेयर से अधिक रोपण पर बोरवेल खनन हेतु अधिकतम 50 हजार रुपये का अतिरिक्त अनुदान भी उपलब्ध कराया जाता है। उल्लेखनीय है कि उत्पादित फसल की बिक्री हेतु भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनुबंधित कंपनियां सीधे खेत से फसल की खरीदी करती है। इसका भुगतान किसानों को डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से सीधे बैंक खाते में किया जाता है।

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