संगीत शिरोमणि वेदमणि सिंह ठाकुर की सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत को सहेजने की ज़रूरत है…शासन द्वारा “वेदमणि संगीत विद्यालय” की स्थापना तथा “वेदमणि संगीत फेलोशिप” प्रदान किया जाना चाना चाहिए

संगीत प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु राज्य स्तरीय ”वेदमणि पुरस्कार” प्रतिवर्ष प्रदान किया जाना चाहिए।
आपका अप्रतिम योगदान आपकी स्मृति को कभी विस्मृत नहीं होने देगा
रायगढ़। संगीत शिरोमणि , कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर जी का देह पंचतत्व में विलीन हो गया।।संगीत मनीषी स्व लक्षमन सिंह तथा संगीत ऋषि तुल्य पिता स्व जगदीश सिंह ‘दीन’ मृदंगार्जुन की गौरवशाली परंपरा परंपरा व व विरासत को आपने समृद्ध किया । आपने अपने गुरु पिताश्री के कथन को ब्रम्ह वाक्य मान कर जीवनपर्यंत पूरी निष्ठाऔर समर्पण के साथ उसका उसका अनुसरण और और पालन किया। उनका स्पष्ट मानना था कि “संगीत मात्र मनोरंजन का ही साधन नहीं है,वरन एक तपस्या और साधना है।ईश्वर प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है।” आपकी साधना,तपस्या , लगन और समर्पण जिसने देश की सांस्कृतिक परम्परा को केवल समृद्ध ही नहीं किया वरन एक नया आयाम दिया है ।जिसने अपनी माटी जन्मभूमि, शहर , राज्य , समाज तथा राष्ट्र को गौरान्वित किया है ।शहर को सांस्कृतिक राजधानी का दर्ज़ा,छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय गौरव गरिमा पूर्ण राष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सव “चक्रधर समारोह गणेश मेला “ तथा राष्ट्र स्तरीय ‘ ‘ चक्रधर पुरस्कार’ आपकी साधना और तपस्या का ही प्रतिफल है।जटिल और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अंचल में आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत की गंगा प्रवाहित है।आपके अप्रतिम योगदान का राष्ट्र ऋणी रहेगा।आपकी स्मृति को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।

संगीत शिरोमणि वेदमणि सिंह ठाकुर की सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत को सहेजने की ज़रूरत है-
जब व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी साधना तपस्या और समर्पण से समाज व लोक कल्याण या अपनी ऐतिहासिक परंपरा ,विरासत तथा धरोहर को संरक्षित करने में लगाता है हुए समृद्ध करता है तो राष्ट्र उसका ऋणी हो राष्ट्र उसका ऋणी हो जाता है।जाता है।समाज राज्य और राष्ट्र की ज़िम्मेदारी भी बहुत बढ़ जाती है। निःसंदेह संगीत शिरोमणि वेदमणि सिंह ठाकुर की सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत को अब सहेजने की ज़रूरत है।शासन द्वारा “वेदमणि संगीत विद्यालय” की स्थापना किया जाना चाहिए।वर्तमान में एकमात्र संगीत कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ में स्थापित है। संगीत महाविद्यालय स्थापना की लंबे समय से मांग की जा रही है। सरकार ने भी चक्रधर समारोह के प्रतिष्ठित मंच से संगीत महाविद्यालय की स्थापना की घोषणा भी की है उसे “वेदमणि संगीत महाविद्यालय” के नाम से स्थापित किया जाना चाहिए।संगीत के क्षेत्र में मेधावी प्रतिभाओं को शासन द्वारा “वेदमणि संगीत फेलोशिप” प्रदान किया जाना चाना चाहिए।संगीत प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु प्रतिवर्ष राज्य स्तरीय ”वेदमणि पुरस्कार” प्रदान किया जाना चाहिए। हज़ारों बेशक़ीमती रचनायें गीत,ग़ज़ल, कविता और लोकगीत हिंदी,छत्तीसगढ़ी और उर्दू भाषा में है उन्हें संस्कृति विभाग साहित्य अकादमी द्वारा संग्रहित कर प्रकाशित करना चाहिए यह सब अनमोल धरोहर को संरक्षित किया जाना अतिआवश्यक है।संस्कृति सभ्यता निरंतर समृद्ध होती रहे ।हमारी आनेवाली पीढ़ी को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।*
“संगीत एक तपस्या है, साधना है इसे हम जीविकोपार्जन का साधन नहीं बना सकते”-
‘संगीत शिरोमणि’ कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर जी का प्राण, जीवन, सब कुछ,केवल संगीत ही है। उन्हें घर,परिवार, बाल,बच्चे यहां तक कि स्वयं के जीवन से भी अधिक प्यारा ‘संगीत’ था। किसी राग , ताल की बंदिश को लेकर बैठे हैं तो दिन – रात , भूख – प्यास, गर्मी – ठंडी, स्वास्थ की कोई चिंता व फिक्र नहीं,जब तक वह सिद्ध नहीं होता उन्हें चैन नहीं मिलती। शासकीय शिक्षक पद से सेवानिवृत्त होने तक उनका घर खपरैल का था। उसी खपरैल के घर में अपने पूज्य पिताश्री जगदीश सिंह दीन मृदंगार्जुन द्वारा सन् 1934 में स्थापित श्री लक्ष्मण संगीत विद्यालय का संचालन भी करते हैं।बहुत बाद में उसे सीमेट का पक्का साधारण छोटा सा घर बनाया। घर क्या वह वस्तुतः कला की देवी माँ सरस्वती का पवित्र मंदिर था । बहुत ही साधारण सामान्य सीधा सरल जीवन शैली। लगभग सन् 1970 में जब उन्हें फिल्म डिविजन मुंबई से असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्ट का ऑफर मिला तब आपके पिताश्री मृदंगवादक जगदीश सिंह ‘ दीन ‘ मृदंगार्जुन जो संगीत ऋषि मुनि तुल्य थे ने यह कहकर मना कर दिया कि “संगीत एक तपस्या है, साधना है इसे हम जीविकोपार्जन का साधन नहीं बना सकते।” भारतीय संगीत के प्रति इतना पवित्र,उत्तम और श्रेष्ठ भावना वाले साधक विरले ही मिलते हैं।रायगढ़ में ही रहकर संगीत साहित्य की साधना और सेवा करते रहे। यही कारण है कि रायगढ़ में आज तक भारतीय संगीत की गंगा निरंतर गतिमान प्रवाहमान है।
सम्मान,अलंकरण और पद प्रतिष्ठा आपके डेहरी में सर झुकाए खड़े रहते थे-
“संगीत शिरोमणि”कला गुरु वेदमणि सिंह ठाकुर जी सम्मान अलंकरण या पुरस्कार के लिए कभी भी स्वयं आवेदन नहीं करते। उन्हें सम्मानित कर संस्थाएं या सरकार स्वयं को सम्मानित व गौरवान्वित महसूस करते ।गुरु जी को राज्य सरकार द्वारा चक्रधर सम्मान से सम्मानित किया गया। गुरु जी का स्थान सम्मान,पुरस्कार, मान प्रतिष्ठा से बहुत ऊंचा है। सम्मान,अलंकरण और पद प्रतिष्ठा आपके डेहरी में सर झुकाए खड़े रहते हैं। जिसे आपके श्री चरणों का आसरा ,सानिध्य और आशीर्वाद मिल जाता वह धन्य हो जाता।अब केवल अशेष स्मृतियाँ शेष रह गई है। गुरु मात्र देह नहीं प्राण है।गुरु महिमा को कौन,कैसे और क्या बखान कर सकता है।गुरुजी आपके चरणों में शतशत नमन ।
गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़।
प्रवास – पुणे महाराष्ट्र ।
gp.kachhwaha@gmail.com
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