जन्म शताब्दी विशेष

#जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष# -जनसंघर्षों के प्रेरणा स्त्रोत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जननायक रामकुमार अग्रवाल

(01.01.1924 – 28.03.2010)

जब मनुष्य समय , काल,और परिस्थिति का सही सही मूल्यांकन करते हुए आने वाले समय की गति, दिशा और दशा को जानने समझने लग जाता है तथा उसके अनुरूप समाज व राष्ट्र को गढ़ने की कोशिश करता है, अपने संपूर्ण जीवन को संघर्षों के पथ में समर्पित कर देता है वही युगदृष्टा,युगपवर्तक या युगपुरुष कहलाता है। जन जन का नायक बन जाता है।।ऐसे लोग विरले होते हैं। ऐसी ही महान शख्सियतों में से एक नाम है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,पूर्व विधायक जननायक रामकुमार अग्रवाल।

यह जन्म शताब्दी वर्ष है। ब्रिटिश गुलामी के शासन काल में रामकुमार अग्रवाल जी का जन्म 01 जनवरी 1924 को वैश्य परिवार में हुआ। परंतु धन उपार्जन के अनुवांशिक गुणधर्म से अलग हटकर गुलामी से मुक्ति के आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए।महात्मा गांधी के स्वराज सत्याग्रह और रायगढ़ में सिद्धेश्वर गुरु,पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी की प्रेरणा और सानिध्य ने उन्हें काफी संबल व प्रोत्साहन दिया। देश स्वतंत्र हुआ पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी संविधान निर्मात्री बोर्ड के सम्माननीय सदस्य और रायगढ़ के प्रथम सांसद हुए। इधर समय की गति धीरे धीरे बढ़ने लगी रामकुमार अग्रवाल विधायक हुए। रामकुमार जी की सोच – विचार के केंद्र में समाज,राज्य और जनता सबसे प्रमुख रही। स्वतंत्रता आंदोलन से समाजिक उन्नति में सहकारिता के महत्व और उसकी जरूरत को बखूबी समझ गए थे। इसीलिए उन्होंने समाज के सभी वर्गों को एक जुट करने और सहकारिता के साथ काम करने को महत्व दिया। रेड़ी वाले, फुटपाथ में काम करने,ठेला,मजदूरी, जूट मिल मजदूरों,दूध बेचने वाले,श्रमिकों,किसानों की दुख, दर्द को पूरी मुखरता से उठाने अपने ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वाले सच्चे और दबंग जन प्रतिनिधि की पहचान के रूप में उभरे। अब उन्हें रामकुमार ‘ एम एल ए ‘ के संबोधन से संबोधित किया जाने लगा।

सहकारिता, कृषि ,शिक्षाऔर स्वास्थ उनकी प्राथमिक सूची में शामिल थी।प्राथमिक और हाई स्कूल का एक बड़ा नेटवर्क उनके ही विधायकी काल में हुआ। युवाओं को रोजगार ,गांव में शिक्षक भर्ती का काम भी आज भी ग्रामीण याद करते हैं। हरित क्रांति अभियान ने कृषि की ओर उनका ध्यान आकृष्ट किया।वे हमेशा कृषि क्षेत्र के विस्तार के विषय सोचते और नई नई योजनाएं बनाते कई प्रस्ताव शासन के पास भेजते विधान सभा में आवाज बुलंद करते । पहली बार मध्य प्रदेश विधान सभा में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि ” हरित क्रांति के लिए आवश्यक है कृषि के समुचित विकास और कृषकों के हित में एक पृथक से समग्र पहलुओं पर विचार करते हुए उस पर कार्य किया जाना चाहिए।इसके लिए जिस तरह रेलवे बजट पेश किया जाता है हमें मध्य प्रदेश के लिए कृषि बजट पेश किया जाना चाहिए।” काफी चर्चाएं हुई।कई कृषि विशेषज्ञों ने इसे प्रगतिशील क्रांतिकारी सुझाव बतलाया। चर्चाएं होती रही,राजनीति करवटें लेती रही लेकिन यह सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता की छत्तीसगढ़ सहित मध्य प्रदेश में कृषि के संसाधनों सिंचाई, जलशयो आदि का निर्माण काम जितना उनके समय काल में हुआ उसके बाद मानो बहुत कुछ ठहर सा गया।

रामकुमार एमएलए की आवाज विधान सभा की सबसे मुखर ,निडर और निर्भीक ,शोषित,वंचितों,दबे – कुचलो गरीबों और किसानों की लोकप्रिय आवाज बन गई। रामकुमार जी ने मध्य प्रदेश विधान सभा में सबसे पहले आवाज उठाई कि ” रायगढ़ की जीवन दायनी केलो नदी में बांध बना दिया जाय तो छत्तीसगढ़ सहित समीपवर्ती राज्यओडिसा के भी बहुत से गांव में हरित क्रांति आ जाएगी।जलस्तर बढ़ जायेगा, मांड और महानदी के साथ जुड़कर सिंचाई का संसाधन विकसित होगा,कृषि भूमि में वृद्धि और सभी खेत खलिहान लहलहाने लगेगे,एक स्वर्णयुग की शुरुआत होगी। लेकिन तबतक राजनीति अपनी दिशा धीरे धीरे बदलने लगी थी।रामकुमार जी स्थिति को समझ भी रहे थे। जो विधान सभा के सबसे मुखर,दबंग,निडर, निर्भीक,लोकप्रिय विधायक और न जाने किन किन विशेषण से विभूषित किया जाता था अचानक राजनीति में अपने ही पार्टी के नेताओं के आंख की किरकिरी होने लग गए।अपने ही पार्टी एवं सरकार के खिलाफ अब कुछ बोलना ,कहना या सुझाव देना पार्टी को खटकने लगा। चापलूसी या चमचागिरी ने राजनीति में पैर जमाने लगी,पर रामकुमार जी सिद्धांतो और विचारों से कहां डिगने वाले थे। लोकप्रिय विधायक जिसके नाम के साथ ‘ एमएलए’ शब्द जुड़ गया हो,जिन्हे लोग रामकुमार ‘ एम एल ए ‘ संबोधन से ही संबोधित करते हो,जिसकी पहचान ही ‘एमएलए ‘ शब्द से हो ,जिसपर कोई दाग न हो उसे विधान सभा की टिकट देने से इंकार कर दिया गया यह रामकुमार के लिए जितना हतप्रभ कर देने वाला निर्णय था उतना ही जनता के लिए भी।पर जनता में कांग्रेस पार्टी पर विश्वास ने नए उम्मीदवार को भी विजयश्री दिलवाया। लेकिन उसके बाद मानो रामकुमार ने दलगत राजनीति से संन्यास ले लिया।

रामकुमार जैसा व्यक्तित्व चुपचाप बैठने वाला कहां था।उनकी दृष्टि हमेशा आम जनता,समाज,राज्य और देश की सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर निरंतर टिकी रहती।वे आत्मचिंतन करते विश्लेषण करते और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते। अब राजनीति का स्वरूप, सोच, विचार, उद्देश्य, लक्ष्य,सब कुछ बदल सा गया। समय ,काल, परिस्थिति, दशा और दिशा को समझ कर सही सच्चे सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनसंगठनों के साथ लेकर एक नया पथ तैयार किया।
सरकार किसी की भी हो उन्हें अपने संघर्षों के माध्यम से सामाजिक हितों में कार्य करने के लिए विवश या बाध्य किया।

राजनीति ने करवट ली विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन की खुली लूट की नई अवधारणा ने जन्म लिया और अधिग्रहण के शासकीय फार्मूला का नया खेल शुरू हुआ। तब पूरे देश के साथ साथ रायगढ़ भी इसके चपेट मे आने लगा।तब एकता परिषद के पी राजगोपाल के साथ मिलकर कई महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मेलन, पदयात्रा, रैली, धरना, सत्याग्रह का आयोजन किये।नदियों को बेचे जाने लगा उसके खिलाफ जनसंगठनों के संयुक्त राष्ट्रीय अभियान में शामिल हुए।मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित वाटर मैन राजेंद्र सिंह के राष्ट्रीय यात्रा की जन सभा रायगढ़ में आयोजित करवाए।और रायगढ़ से उड़ीसा यात्रा के लिए राजेंद्र सिंह के साथ मुझे (गणेश कछवाहा)
को भेजा। वाटरमैन राजेंद्र सिंह के साथ पूरे उड़ीसा की यात्रा मैने पूरी की । एक अदभुत अनुभव की प्राप्ति हुई। राजनीति, समाज और राष्ट्र की अवधारणा एवं उनके साथ समाज राष्ट्र और जनता की जवाबदेही, सामाजिक कार्यकर्ताओ, चिंतकों एवं विशेषज्ञों का चिंतन और राजनैतिक अन्तर्द्वन्द बहुत कुछ साफ साफ समझ आने लगा। राजनीति के चाल,चलन और चरित्र में काफी बदलाव आ चुका था।

सन 1990 में रायगढ़ में विकास के नाम पर अंधाधुंध औद्योगिक कारण की नीव डाली जा रही थी।पूरे नियम,कानून,संविधान,मानवीय मूल्यों,सामाजिक उत्तरदायित्वों को अनदेखी कर गांव के गांव,जंगल के जंगल उजाड़े जाने लगे थे,नदी नालों जलाशयों की खुली लूट की छूट दी जाने लगी थी तभी रामकुमार जी को रायगढ़ की बर्बादी का मंजर स्पष्ट नजर आने लगा था।उन्होंने छोटे बड़े सभी संगठनों,सामाजिक कार्यकर्ताओं,नेताओं,बुद्धिजीवियों,विचारकों,विशेषज्ञों को एकत्रित कर गैर राजनैतिक दल बनाया जिसका नाम करण किया ” जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा।” इस बैनर तले उन्होंने जनांदोलनों की लंबी श्रृंखला तैयार की।देश के मुख्यफलक पर रायगढ़ छत्तीसगढ़ का नाम जाने जाना लगा।जनसुनवाई का क्या स्वरूप हो पूरे राष्ट्र को रायगढ़ के आंदोलन ने बताया।

रायगढ़ में उनके द्वारा खड़ा किए जनांदोलन के लगभग 33 वर्ष हो रहे है।इन वर्षों में रायगढ़ ने बहुत कुछ देखा,समझा, और जाना है। बहुत कुछ पाया और खोया है।संघर्ष शील साथियों की एक फौज खड़ी हुई है।जो लोग उस समय विकास विरोधी कहते थे वे आज स्वयं पूरी सच्चाई को खुले आंख से देख रहे हैं और कहते पाए जाते हैं कि “जननायक रामकुमार”की कमी खलती है उनकी कमी कभी पूरा नहीं कर पाएंगे। जब विधायक थे तो एमएलए के नाम से संबोधित करते थे। उनके इस लंबे जनसंघर्षों ने स्वतः “जननायक ” के विशेषण से विभूषित करने लगे।यह जनता द्वारा दिया गया अवार्ड है जो कहीं खरीदा नहीं जाता ,बहुत अनमोल है। जनसंघर्षों से उनके खिलाफ कितने फर्जी केश दर्ज किए गए। 80 से ज्यादा की उम्र में रायगढ़ से लेकर हरियाणा तक पेशी में जाना क्या क्या आरोपों की बौछारों को सहना बहुत पीड़ा दायक तो थी लेकिन जनता, समाज राज्य और देश हित के सामने बहुत नगण्य था,खुशी अप्रतिम थी।यह जीवन का एक सौंदर्य था।

जीवन के अंतिम क्षणों में अस्वस्थ बिस्तर में पड़े लेटे लगभग रात्रि 10.30 बजे अपने शरीर की पीड़ा को छोड़कर हमे कह रहे थे देखो अखबार में क्या लिखा है? केलो को बचा लो। पर्यावरण संरक्षण का क्या होगा?कौन इनकी रक्षा करेगा?तुम लोग संघर्ष जारी रखना। उनके अंतिम शब्द आज भी गुंजित होते हैं – “मैं रहूं या न रहूं पर संघर्ष की लौ जलाए रखना।सुबह की प्रथम किरण उम्मीद की किरण है। शायद उन्हें अहसास हो गया था कि अब बस जीवन यात्रा पूरी हो चुकी। जा रहा हूं । दिनांक 28 मार्च 2010 की सुबह बुलंद,मुखर, संघर्ष और क्रांति की आवाज सदा सदा के लिए मौन हो गई। इंकलाब ज़िंदाबाद,जननायक अमर रहे ,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर रहे गगन भेदी नारों के बीच सबसे अलविदा कह गए।तुम न रहे इसका गम है मगर संघर्ष का झंडा लेकर आगे बढ़ते जाएंगे।
शत शत नमन।

गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़
gp.kachhwaha@gmail.com
94255 72284

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