शरद पूर्णिमा पर विशेष

शरद पूर्णिमा पर विशेष###मानकेशरी के 15 दिवसीय नवरात्र समापन 6अक्टूबर को

रायगढ़। सांसद राज्यसभा  देवेन्द्र प्रताप सिंह 6 अक्टूबर को प्रात: 11 बजे अपने कुलदेवी माता मानकेशरी के परम्परा अनुसार पूजा-अर्चना के लिए तमनार विकासखण्ड के ग्राम कर्मागढ़ के लिए परिवार सहित रवाना होंगे। राज परिवार के कुलदेवी माता मानकेशरी को सभी की मान देवी माता बताया। उन्होंने जिले के आम नागरिकों से इस 15 दिवसीय नवरात्र के अंतिम दिवस पुन्नी बल आयोजन में शामिल होने का अनुरोध किया है।
कर्मागढ़ की मां मानकेशरी में रहस्य रोमांच भरे आदिवासी संस्कृति अनुरूप शक्ति उपासना बलपूजा अपनी समस्त विशेषताओं के साथ 550 वर्षों से आज भी जारी है। जिसमें बुढ़ादेव राजा बल, खाड़ा बल तथा पुन्नी बल जैसे आयोजन होता है। वहीं आम तौर पर नौ दिवसीय नवरात्रि के स्थान पर 15 दिवसीय उपरोक्त सभी आयेाजनों में हजारों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित होते है। गोड़वाना राज परंपरा अनुसार रायगढ़ घराने के सदस्य सांसद देवेन्द्र प्रताप सिंह उनकी बड़ी बहन सुश्री उर्वशी देवी सिंह सहित पूरे परिवार के साथ उक्त शक्ति बल पूजा में उपस्थित रहेंगे। आइये चले आज दोपहर को माता मानकेशरी के दर्शन के लिए पहुंचे कर्मागढ़।

शरद पूर्णिमा पर विशेष: मानकेशरी के 15 दिन की नवरात्रि में प्राचीन गोंडवाना परंपराओं की झलक

“कर्मागढ़ की माँ मानकेशरी में रहस्य, रोमांच भरे आदिवासी संस्कृति के अनुरूप शक्ति उपासना, बलपूजा, अपनी समस्त विशेषताओं के साथ 500 वर्षो से आज भी जारी है जिसमें बूढ़ादेव-राजाबल, खाड़ाबल, पुत्रीबल जैसे आयोजन होता है वहीं आमतौर पर नव दिवसीय नवरात्रि के स्थान पर 15 दिवसीय तक उपरोक्त सभी आयोजनों में हजारों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित होते हैं। गोंडवाना राज परंपरा के अनुसार रायगढ़ राजघराने के सदस्यों की उपस्थिति उक्त शक्ति बलपूजा में प्राचीन आस्थाओं की याद दिलाती है।”

प्रस्तुत है माँ मानकेशरी कर्मागढ़ की बल पूजा पर एक विशेष:- भारतीय आध्यात्मिक, दर्शन, कला, संस्कृति और सभ्यता एवं समस्त सृष्टि की परम आधारभूता शक्तिमयी माँ दुर्गा की महान उपासना करना प्रत्येक नर-नारी का मनोरम पर्व है। आदि शक्ति भगवती माँ दुर्गा का उपासना शक्ति का प्रतीक है। शक्ति को संपूर्ण संसार में प्रमुख स्थान दिया गया है। पूरे देश में वर्ष में आश्विन और चैत्र मास में माँ दुर्गा का पूजा नवरात्र में विधि-विधान के साथ मनाया जाता है, लेकिन यह बात बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि रायगढ़ राजवंश परिवार की आराध्य आदि शक्ति माँ मानकेशरी की पूजा नव दिन नहीं बल्कि पूरे 15 दिनों तक बल(शक्ति) की पूजा पारंपरिक विधि-विधान प्राचीन पद्धति से आदिवासी संस्कृ ति के अनुरूप शरद पूर्णिमा तक हर्षोल्लास के साथ आज भी मनाया जाता है।

रायगढ़ जिले के पूर्वांचल में गहन वनों से आच्छादित ऐतिहासिक प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल कर्मागढ़ जहां आज से 500 वर्ष पूर्व रायगढ़ राजवंश परंपरा अनुसार आदि शक्ति माँ मानकेसरी देवी के साक्षात् बल शक्ति के प्रदर्शन प्राचीन आदिवासी संस्कृति के अनुरूप पूजा-अर्चना, मनौती, विश्वास, बड़ी श्रद्धा, आगाध आस्था के प्रतीक धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो 15 दिनों तक चलने वाले माँ मानकेसरी देवी के बल शक्ति नवरात्र पूजा का कोई लिखित दस्तावेज नहीं है लेकिन रायगढ़ राज परिवार एवं राजमाता रानी लोकेश्वरी देवी से मिली जानकारी के अनुसार आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व राजा मदन सिंह ने रायगढ़ राज्य की स्थापना की थी, वे आदि शक्ति माँ दुर्गा के महान भक्त थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि शक्ति माँ मानकेसरी की स्थापना नवरात्र के समय कर्मागढ़ में कर बल शक्ति की पूजा राज परिवार में आरंभ की थी जो पुश्त-दर-पुश्त चली आ रही है।

आदिवासी परंपरा के अनुसार 15 दिनों तक चलने वाले बल शक्ति की पूजा आश्विन प्रथम दिन ‘बूढ़ा देव’- ‘राजाबल’ शक्ति की पूजा की जाती है, ठीक आठ दिन बाद याने दुर्गा अष्टमी के दिन ‘खाड़ाबल’ तथा शरद पूर्णिमा के दिन ‘पुत्रीबल’ शक्ति की आदिवासी गोंडवाना परंपरा अनुसार भव्य रोमांच, रहस्य एवं मॉं भवानी अर्थात् मॉं मानकेसरी के समक्ष बलि प्रथा से पूजा की जाती है। जहां कर्मागढ़ तथा आसपास के कई ग्रामों एवं उड़ीसा सीमा से लगे ग्रामों के हजारों की संख्या में आदिवासी एवं अन्य भक्तगण अपनी आराध्य देवी माँ मानकेसरी देवी के साक्षात् दर्शन एवं पूजा के लिए कर्मागढ़ पहुंचते हैं। ‘पुत्री बल’ शरद पूर्णिमा के दिन प्रात: से ही हजारों की संख्या में महिला, पुरूष एवं बच्चे लाल फूलों, देवनापत्तों की माला, कांसे के लोटे में दूध रखकर सराईपत्ता से ढंककर छींका में लटकाये, नारियल सिन्दूर अगरबत्ती एवं बकरा के लिये कतारबद्ध होकर बीया-बान सघन जंगलों में ऊंची नीची पहाडिय़ों घाटियों को पार करते हुये पगडंडी रास्तों से कर्मागढ़ माँ मानकेसरी मंदिर में पहुंचते है।

तीन-चार बजते-बजते इस छोटे से गांव में हजारों की संख्या में वहां भीड़ एकत्रित हो जाती है। मंदिर के पुजारी बैगा उपवास कर माँ मानकेसरी की गोंडवाना परंपरा अनुसार प्राचीन पद्धति से पूजा पाठ प्रात: से आरंभ रहता है, तदुपरांत दोपहर लगभग 3 बजे तक अनिवार्य रूप से रायगढ़ राजवंश परिवार का भव्य शोभा यात्रा मॉँ मानकेसरी के पूजा के लिये मंदिर रवाना होता है तथा मंदिर पहुंचकर राज परिवार द्वारा परंपरा अनुसार माँ मानकेसरी देवी का अभिषेक कर पूजा किया जाता है। पूजा के शोभा यात्रा के ढोल, नगाड़े आदिवासियों के परंपरागत प्राचीन काल में युद्ध के समय बजने वाले वाद्य यंत्र के बजने से पूरा बियाबान जंगल गुंजायमान हो उठता है वहीं कर्मा एवं गड़वाबाजा की धुन पूरे इलाके में गूंज उठता है। बैगा द्वारा इसी बीच माँ मानकेसरी देवी के पूजा में तल्लीन बैठा रहता है जहां माँ मानकेसरी की सवारी आते ही वहां मंदिर के बाहर आयोजन स्थल पर बलि दिया जाता है जो राज परंपरा के विधि-विधान से होने के पश्चात् सैकड़ों की संख्या में आदिवासी परंपरागत बलि देते ही माँ मानकेसरी देवी के सवारी आने वाले बैगा बकरे की धड़ उठाकर खून चूसने लगता है, सैकड़ों की संख्या में दिये जा रहे बलि तथा सवारी आने वाले बैगा द्वारा सभी बकरे की खून चूसना रौद्र रूप देख माँ मानकेसरी देवी के प्रति उपस्थित श्रद्धालु भक्तगण नतमस्तक हो उठते है, इसी बीच वहां पहुंचे आदिवासी भक्तगण अपने घर से लाये दूध माँ मानकेसरी देवी के सवार बैगा के ऊपर डाला जाता है तथा फूल पत्तों की माला एवं नारियल अर्पण किया जाता है। इस अवसर पर क्षेत्र के सैकड़ों महिलाएं खुले बाल रख माँ मानकेसरी के व्रत रख वहां दंडवत जमीन पर सोयी रहती है जहां अपनी मनौती पूर्ण करने एवं आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये बताया जाता है कि मनौती मांगने वाली महिलाएं प्राय: बांझ, असाध्य रोग एवं योग्य पति के लिये कुंआरी कन्याएं माँ मानकेसरी से आशीर्वाद लेती है।

बताया जाता है कि पूर्णिमा के पूर्व देर रात्रि बैगा द्वारा मंदिर में गोंडवाना पंरपरा के अनुरूप गुप्त रहस्यमय पूजा-अर्चना किया जाता है जो अन्य नागरिकों के लिये निषेध रहता है उसे निशा पूजन भी कहते है। राज परिवार पूजा अर्चना के पश्चात् आयोजन स्थल से बाहर आने पर उनके स्वागत के लिये स्टेट समय की सेना थी उसी अनुरूप तलवार, ढाल, युद्ध कला कौशल एवं तलवार भांजने का प्रदर्शन तथा क्षेत्र से आये विभिन्न ग्रामीण मनोरंजन कार्यक्रम नाचा, कर्मा तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। तत्पश्चात् राज परिवार के सदस्य अपने डेरा पहुंचते है। इस बीच आयोजन स्थल पर मानकेसरी के सवार आने वाले बैगा मन्नत मांगने वालों को आर्शीवाद देता है। बैगा की सवारी उतरते ही वे खून की उल्टियां करने के पश्चात् उन्हें नहलाया जाता है। बैगा द्वारा नहाने के पश्चात् विकराल रूप धारण करने वाले बैंगा एक भोले-भाले आम वनवासी की तरह लगने लगता है तथा वह पुन: माँ मानकेसरी की पूजा करने के पश्चात् प्रसाद लेकर बाजे के साथ डेरा पहुंचकर राज परिवार के सदस्यों को प्रसाद वितरण करने के पश्चात् 15 दिवसीय नवरात्रि दुर्गा पूजा का समापन हो जाता है।

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